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देश-विदेश में चिन्हारी को प्रेरणा देने वाले काम: “एका नारी संगठन”

Writer's picture: Swarnima KritiSwarnima Kriti

Updated: May 15, 2020


गाँधी एक ऐसे समाज की परिकल्पना करते थे जहाँ समाज का सब से निचला वर्ग भी खुशहाल हो और उसे न्याय और समता मिले। अगर संछिप्त में कहें तो इसे ही वो स्वराज कहते थे. मेरा काम भी इसी स्वराज के निर्माण को समर्पित है। फिछले तीन वर्षों से में एका नारी संघठन, रायगडा, ओडिशा, के साथ इसी सपने को ले के जुड़ा हुआ हूँ। मेरा काम इन एका महिलाओं के साथ, जो की कोंध समाज से आती हैं, मिल के एक ऐसे खेती की क्परिकल्पना है जो अहिंसक हो, ना केवल मनुष्यों के लिए अपितु मिटटी के लिए, उस्समे रहने वाले कीटों के लिए और वो हर जिव जो प्रकृति का अभिन्न अंग है।

लेकिन एक प्रशन तो ये भी है की क्या कोंध आदिवासी समाज का कोई समझ भी है खेती को लेके? कोंध आदिवासी समाज जाने कितने ही पूर्व काल से अपने खेती का एक नजरिया बनाते आए हैं जो की इनके रहन सहन का एक अभिन्न अंग है. इनके लिए प्रकृति एक मित्र सामान है न की सत्रु जिस पर की विजय प्रात्त करने की अवस्क्यता हो। अपना बीज, अपनि खेती का तरीका, प्रकृति का सहयोग मिलके बनता है कोंध आदिवसी की खेती और जीवन का आधार। अगर अहिंसा की बात कोंध समाज के सन्दर्भ में कही जाए तो इनका जीवन शायद सबसे अधिक अहिंसक जीवन है।

तत्कालीन सामाजिक सन्दर्भ में एक ही बात कहना चाहूँगा और वो यह है की विकास के जनून ने कहीं न कहीं इस समाज को भी अपने कुंडली में जकड लिया है और अपनी पकड़ मजबूत करता जा रहा है। इस का सबसे प्रत्यक्ष प्रामाड कोंध समझ के बदलते कृषि में प्रत्यक्ष है। रायगड़ा में हर साल हजारों एकड़ ज़मीन कपास के उपाज की ओर व्यय हो रहा है. हर साल हजारों एकड़ ज़मीन से परंपरागत खेती ख़तम हो रही है और साथ में ख़तम हो रहे हैं इनके वो बीज जो इनके खाद्य सुरक्षा का मूल आधार रहा है।

विकास का सपना ,एक अहिंसक समाज जो की अपने जीवन का आधार प्रकृति को मानता है, उसे हिंसा की राह पर तेजी से गतिमान कर रहा है. आज का कोंध अपने ज़मीन में ज़हर डालने से पहले संकोच नहीं करता। आज उससे पैसों के लिए जंगले से पेड़ काटने में दुःख नहीं होता। ये बदलाव सिर्फ प्रकृति के प्रति नहीं है अपितु ये तो मानव का मानव के प्रति भी है। सर्प को ह्रदय से लगाने से चन्दन की ठंडक नहीं मिल सकती। उसीप्रकार विकास, जिसके प्रति एक गहरी चिंता न की गई हो, वो उस पागल घोड़े के सामान ही जिसकी न तो हम गति पर लगाम दे सकती हैं और न ही उसकी दिशा निर्धारित कर सकते हैं, और मजे की बात ये है की आज कोंध समाज भी इसी पागल घोड़े का सवार बन चूका है और ये बेलगाम घोडा तेजी से खाई की तरफ बढ़ रहा है।

एका नारी संघठन और मेरे काम का एक संधर्भ ये है की खेती माध्यम से कैसे हम खुद को और समय से साथ दूसरों को इस विकास का सही चेहरा दिखा पायें. इसके लिए हम यथारत प्रयास कर रहे हैं की हम कोंध अतीत से सिख के आज को बदलें। ये ऐसा है जैसे हमारा बिता हुआ कल एक औजार बॉक्स है जिसमे, हथोरी, पाना, छेनी इत्यादी रखा हो और जिसप्रकार की जरूरत हो वहां से वो औजार लेके के हम अपनी समस्या दूर कर ले। लेकिन इस औजार बॉक्स को तलासना एक अहम् जरूरत है और उसके इस्तेमाल का भी।


आशुतोष

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