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  • Writer's pictureSwarnima Kriti

किशोरी बालिकाओं के लिए एक नयी सोच की राह: चिन्हारी से जुड़ने का अनुभव


मैं चिन्हारी की एक सदस्य हूँ। चिन्हारी का आशय चिन्ह छोड़ने या याद रखने से है। चिन्हारी लड़कियों का समूह है जहाँ वे एक दूसरे के सामने अपनी मन की बातों को रखती हैं और एक दूसरे को समझती हैं। हमारा काम चार तरफ़ा है। हम अपने लिए, एक दूसरे के लिए, गाओं के लिए और समाज के लिए काम करना चाहते हैं। हमारा एक उद्देश्य लिंग भेद को हटाना है। अक्सर, गांव हो या शहर लड़के और लड़कियों में भेद-भाव किया जाता है। लड़कियों को पैदा होते ही ये सीखना शुरू कर दिया जाता है की वे लड़को से अलग हैं, उन्हें लड़को से दूर रहना चाहिए, उनसे बात नहीं करनी चाहिए, वह काम करने की ज़िद नहीं करनी चाहिए जो लड़के करते हैं आदि। ये सभी बातें लिंग भेद की ओर इशारा करती हैं की लड़कियों और लड़को में कितना फर्क है। यह सारी बातें समझ कर हमने एक लड़कियों का समूह बनाया, जहाँ हम भेदभाव के ऊपर गहराई में काम करते हैं और सभी एक दूसरे का सहयोग करते हैं। हमारी कोशिश है की यह समूह बहुत आगे तक जाये। अपने समूह को हम आगे बढ़ने के लिए हमने पोषण पे काम किया। डॉ. अनूप धर के द्वारा की गयी शारीरिक जांच से हमें पता चला की हमारे समूह की कई लड़कियों में खून की कमी थी। इस बात को ध्यान में रखते हुए हमने देसी बीज पर चर्चा शुरू किया। कुछ सोच-विचार के बाद हमें पता चला की देसी बीज (हाइब्रिड बीज की तुलना में) में पोषण तत्त्व ज्यादा होते हैं । इस वजह से हमने देसी बीज को ले कर काम करना शुरू कर दिया। हमारे लिए देसी बीज लगाने का उद्देश्य सिर्फ हमारा पोषण नहीं था। हम अपने इस प्रयोग के माध्यम से गांव और समाज के सभी लोगों को स्वस्थ रहने का लक्ष्य और प्रेरणा देना चाहते हैं। साथ ही हमारी कोशिश है की सभी मिलकर मिटटी के स्वस्थ्य के बारे में सोच सके। वह मिटटी जिसकी हम आदिवासी छेत्रों में पूजा करते हैं। जैविक पद्धति से उगाये गए देसी बीज मिटटी और उसके भीतर रहने वाले जीव जंतुओं की रक्षा करते हैं। हाइब्रिड बीज के आने और उनके प्रचार प्रसार के कारण देसी बीज विलुप्त हो गए हैं। लोगों ने देसी बीज इस्तामाल करना बहुत कम कर दिया है। हाइब्रिड बीज के कुपोषित होने के कारण उसमें डाले जाने वाले रासायनिक पदार्थों से हमारे शरीर में कई प्रकार की बीमारियां पैदा हो रही हैं। किसान अनजाने में पूरी तरह से बाजार पर आश्रित हो गए हैं। हमारी कोशिश है की किसान बीज के मालिक हों और उन्हें बीज बाजार से खरीदना न पड़े। उद्योगिक क्रांति ने हमें सुविधा जनक मशीनो के इस्तेमाल और कम समय में ज्यादा मुनाफा प्राप्त करने की दौड़ में लगा दिया है। इस क्रांति से देश एक प्रकार का विकास तो कर रहा है मगर उसके दुष्परिणाम भी प्राप्त हो रहे हैं। रासायनिक दवाइयों से मिटटी में रहने वाले जीव मर रहे हैं, मिटटी की दुनिया का संतुलन बिगड़ रहा है, तथा उसकी उपजाऊ शक्ति कम होती जा रही है और फसल पर इसका असर दिख रहा है। हम देसी बीज को प्रोत्साहन देना चाहते हैं ताकि मिटटी की उपजाऊ छमता बनी रहे और फसल अच्छे से हो पाए।

जिस समय हमने देसी बीज उगने के बारे में सोचा उस वक़्त हमें उन्हें उगने की प्रक्रिया नहीं पता थी। पहली बार, मार्च 2019 में हमने, बिना सही पद्धति जाने ही बीजों को अपनी बाड़ी में लगाया। बीज पौधों में परिवर्तित हो गए थे और कुछ ही दिनों में उनमें फूल आने वाले थे की हमारे गांव डोकाल में बर्फ की बारिश हो गयी। इस वजह से हमारी सारी सब्ज़ियां ख़राब हो गयी। हिम्मत न हारते हुए हमने खरीफ 2019 में फिर से कोशिश की। इस बार हम देसी बीज को सही पद्धति से लगाना चाहते थे। इसी ज्ञान को सिखने के लिए हम उड़ीसा में रहने वाले वैज्ञानिक डॉ. डबल देब के प्रयोगात्मक खेत (http://cintdis.org/basudha/) में गए। यह खेत और उनका घर नियमगिरि की चट्टानों के बीच में था। वहां रहने वाले उनके साथ दुलाल जी, महेंद्र जी और सविता जी ने स्वादिष्ट खाने के साथ हमारा स्वागत किया। इस खेत में केवल देसी बीज ही लगाए जाते हैं। वे बीज को परीक्षित पद्धति से लगते हैं जिससे उनके पौदों में ज्यादा कीड़े नहीं लगते। उन्होंने हमें बीज के बारे में और बीज लगाने के बारे में कई बातें बताई। वहां सिखाई गयी बातों को हमने वापिस आ कर सभी के साथ चर्चा में रखा। उनकी पद्धतियों को अपनाते हुए हमने अपनी बाड़ी में सब्ज़ियां लगायी।

हमारी बाड़ी खुली जगह में है जहाँ कोई भी जानवर आसानी से घुस सकता है। जानवरो से बाड़ी को बचाने के लिए हम सभी लड़कियों ने मिल कर घेराव किया। हम सभी लड़कियां हर दिन स्कूल जाने से पहले एक घंटा बाड़ी में सफाई और मिटटी हल्का करने का काम करती थी। दस दिन लगातार हम सुबह सुबह कुदाली और फावड़ा ले कर काम करने पहुंच जाया करते थे। धीरे धीरे बाड़ी के तैयार होने के बाद हमने बीज लगाना शुरू किया। बीज लगाने के बाद भी हम उनकी देख भाल करते रहे। प्राकृतिक रूप से पानी न गिरने पर हम सभी मिल कर बाड़ी में पानी डाला करते थे। पौधों को शत्रु कीट से बचने के लिए हमने बहुत ही आसानी से बन जाने वाली जैविक दवाइयां डालीं। अब सभी सब्ज़ियां फूल और फल दे रही हैं। हम सभी मिल कर बाड़ी में काम करते हैं और सब्ज़ियों को बाँटते हैं।

हम सब इतने सारे हैं की कभी कभी हमारे बीच में छोटे मोठे झगडे हो जाते हैं, मगर हमलोग फिर मिल भी जाता हैं। बाड़ी के अलावा हमलोग खेल भी खेलते हैं, गाने गाते हैं, नाटक करते हैं और बहुत मस्ती भी करते हैं। जब हम सभी साथ में रहते हैं मुझे बहुत अच्छा लगता है। हमारा समूह अटपटा सा है। इसमें हमलोग कभी हस्ते हैं तो कभी मिलकर रोते हैं, इस कारण यह समूह रोचकदार है। कोई भी हम लोगोन के समूह में जुड़ सकता है, हमारे साथ बातें कर सकता है और हमारे साथ काम भी कर सकता है। इस पत्रिका के माध्यम से हमारे काम को पढ़ने वाले सभी लोगो को हम धन्यवाद करते हैं और हमारे काम में किसी भी प्रकार से हमारा सहयोग करने के लिए आमंत्रित करते हैं। आप हमारी बौद्धिक, आर्थिक, श्रम किसी भी रूप या तरह से मदत कर सकते हैं, आप हमें याद कर के या हमारे लिए प्रार्थना कर के भी हमारा सहयोग कर सकते हैं। हम आपकी हर कोशिश के लिए आपका धन्यवाद करते हैं।

कुमारी केशबाती नेताम

कक्षा 11 (कॉमर्स)

डोकाल

धमतरी, छत्तीसगढ़

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