यह गीत दूल्हे या दुल्हन पर तेल चढाने के वक़्त (हल्दी के वक़्त) गाया जाता है |
तरी हरी नानी, हो देवनारायण,
हाथे में कंगन अउ माथे पे मौर।
कहवा ले हल्दी, हो तोरे ओ जनामन,
मारार बाड़ी ले, ओ लिए अवतार।
कहवा ले पर्रा, हो तोरे ओ जनामन,
कड़ड़ा घर ले, ओ लिए अवतार।
कहवा ले करसा, हो तोरे ओ जनामन,
कुम्हार घर ले, ओ लिए अवतार।
कहवा ले पोनी, हो तोरे ओ जनामन,
कोसटा घर ले, ओ लिए अवतार।
कहवा ले तेल, हो तोरे ओ जनामन,
तेली घर ले, ओ लिए अवतार।
तरी हरी नानी, हो देवनारायण,
हाथ में कंगन अउ माथे पे मौर।
इस गीत में सभी अपने देव को याद करते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं। हल्दी की रस्म में इस्तेमाल होने वाली हर सामान की बात होती है। साथ ही वह सभी सामान कहाँ से लाया गया है यह बताया जाता है। गोंड सभ्यता मौखिक रूप से ही आने वाली पीढ़ियों को सौंपी गयी है। इस सभ्यता को लिखित रूप से कोई ब्यौरा नहीं होता। इस लिए ऐसे गीतों के माध्यम से बढ़ती पीढ़ी भी यह जान जाती है की तेल चढ़ाने का सारा सामान कहाँ से आता है। इस गीत में बताया जाता है की हलदी मरार परिवार से लाया जाता है, पर्रा कड़ड़ा परिवार से आता है, करसा कुम्हार के घर से लाया जाता है, पोनी (रुई) कोस्टा जाती के लोगों के घर से लाया जाता है और तेल तेली (या साहू जाती) के घर से लाया जाता है। ये सभी जातियां साथ मिल कर गोंड विवाह को सम्पन्न होने में मदद करती हैं। गीत में इन सभी जातियों के अवतार (जन्म) लेने के लिए गायक आभारी हैं। गायक देव के आभारी हैं जो उन्होने इस व्यवस्था को संपूर्ण किया। सभी देव से कंगन और मौर पहने दूल्हे या दुल्हन के लिए आशीर्वाद मांगते हैं।
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